चेहरा देख दर्पण में........
आदर्शवाद की आवाजें
गूंज रही गगन में
कानों से टकराती
लगती जैसे शूल
चेहरों पर लगी धूल
टगें खूंटियों पर उसूल
फिर भी बनते रसूल
कहने को मन होता
लिखने को अकुलाता
चलता द्वंद्व अन्तरमन में
रुक जाता हूं
चेहरा देख दर्पण में।
गोपाल कृष्ण गर्ग
राजसमंद (राजस्थान)
7 जनवरी 2025
Comments
Post a Comment