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चेहरा देख दर्पण में........

आदर्शवाद की आवाजें  गूंज रही गगन में कानों से टकराती लगती जैसे शूल चेहरों पर लगी धूल  टगें खूंटियों पर उसूल फिर भी बनते रसूल  कहने को मन होता  लिखने को अकुलाता  चलता द्वंद्व अन्तरमन में  रुक जाता हूं  चेहरा देख दर्पण में। गोपाल कृष्ण गर्ग  राजसमंद (राजस्थान)  7 जनवरी 2025

आंखें

आंखें अजूबा है देखती है दिखाती है  बोलती है  बताती है बाहर की दुनियां  भीतर की हलचल  अनपढ़ भी  पढ़ लेता है आंखों की भाषा  कोई आंखों में खटका कोई आंखों का तारा कोई बिठाता हैं सर आंखों पर  कोई फेर लेता है आंखें  आंखें अजूबा है । गोपाल कृष्ण गर्ग  राजसमन्द  6 अगस्त 2023